जल प्रदूषण क्या है?(Jal Pradushan Kya Hai) इसके कारण क्या क्या है और जल प्रदूषण को नियंत्रण कैसे करे?

मानब जाती के लिए प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बैन चूका है चाहे कोई भी प्रदूषण हो जैसे की वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भी बहुत सारे है। अगर आज इसे नियंत्रण नहीं किया गया तो आगे चल के हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या होगा। आज हम बात करेंगे जल प्रदूषण के बारे में। जल हमारे लिए बहुत आवश्यक है। हमारे दैनिक जीवन में ऐसे बहुत सारे कार्य हैं जिन्हें हम जल के बिना कर ही नहीं सकते, हम जल के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।

आज अगर जल इतना प्रदूषित हो रहा है तो इसका प्रमुख कारण मानवीय त्रुटियां ही है। तो हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम जल को प्रदूषित होने से कैसे बचाएं, हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि हम अपने लिए और अपनी भावी पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित जल को बनाए रखें। तो आइये जानते हैं की जल प्रदूषण क्या हैं, इसके कारण क्या क्या हैं और जल प्रदूषण को नियंत्रण कैसे करे। 

जल प्रदूषण क्या है? – Jal Pradushan Kya Hai

जल प्रदूषण जल निकायों का संदूषण है जो आमतौर पर मानवीय गतिविधियों के परिणास्वरूप इस तरह से जो इसमें वैध उपयोग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

जल प्रदूषण के कारण

  • कृषि
  • औद्योगिक अपशिष्ट
  • शहरी अपशिष्ट
  • घरेलू अपशिष्ट

जल प्रदूषण के स्रोत –

  • प्राकृतिक स्रोत
  • मानवीय स्रोत

प्राकृतिक स्रोत-

प्राकृतिक स्रोतों का जल भी धीरे-धीरे प्रदूषित हो रहा है जल एक गतिमान संसाधन है, जहां पर वर्षा का जल ढलान के अनुसार बहकर एकत्रित होता है तो उस सतह के खनिज प्राकृतिक जल में घुल जाते है। वे खनिज भूमि की प्रकृति पर निर्भर होते है जैसे अगर जल कृषि भूमि पर एकत्रित होता है तो वहां उस जल में रासायनिक कीटनाशक के तत्व घुल जाते है और औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक अपशिष्ट जल में विलीन हो जाते हैं।

मानवीय स्रोत-

जल को प्रदूषित करने का सबसे बड़ा कारण मानवीय त्रुटि ही है

  • औद्योगिक अपशिष्ट – औद्योगिक अपशिष्ट से भारत में सबसे ज्यादा जल प्रदूषण होता है। अपशिष्ट के नियोजित निस्तारण नहीं होने के कारण औद्योगिक अपशिष्ट को नदियों में बहा दिया जाता है। जैसे कि कागज उद्योग के अपशिष्ट लुगदी को नदियों में बहा दिया जाता है, अन्य उद्योग चमड़ा उद्योग, तेल रिसाव के अपशिष्ट ओं का निस्तारण नहीं किया जाता। इन से सबसे प्रभावित नदी यमुना एवं गोमती नदी है।
  • नगरीय गंदा जल – नगरो के घरेलू अपशिष्ट को सड़को पर डाल दिया जाता है जो वर्षा के जल के साथ बहकर जल स्त्रोतों में चला जाता है। 
  • कृषि अपशिष्ट – खेती में प्रयोग होने वाले हानिकारक रासायनिक कीटनाशों से जल प्रदूषण बढ़ रहा है। उसमे होने वाले फॉस्फेट और नाइट्रेट से जल का उपयोग अवैध हो गया है, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में जो हरित क्रांति से प्रभावित है।
  • सागरो में होने वाला तेल उत्पादन और झींगा उत्पादन से सागरीय जल प्रदूषण का शिकार ‍हो रहा है इससे सागरीय जीवो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण के प्रकार – Jal Pradushan ke Prakar

भूमिगत जल 

जब नदी नाले पृथ्वी की सतह पर बहते हैं तो उनका कुछ जल पृथ्वी की सतह पर बनी दरारों से अंदर की ओर रिस जाता है जो पृथ्वी की सतह के अंदर भूमिगत जल के रूप में एकत्रित हो जाता है।

भूमिगत जल के प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण है कृषि में प्रयोग होने वाले कीटनाशक, जिनमें भारी मात्रा में रासायनिक पदार्थ होते हैं यह रासायनिक पदार्थ सतह के नीचे रिस कर भूमिगत जल को अपशिष्ट कर देते हैं।

सतही जल 

सतही जल के अन्तर्गत आते है नदियां , झीले ,और अन्य सतही जल संसाधन। यूएस पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के राष्ट्रीय जल गुणवत्ता पर सर्वेक्षण के अनुसार 50% नदियां एवं एक तिहाई झीलें जल प्रदूषण का शिकार है।

सागरीय जल

चाहे तट के साथ या दूर अंतर्देशीय रसायनों भारी धातु जैसे प्रदूषकों को खेतों एवं कारखानों कारखानों से नदियों और नदियों से समुंदरो में चला जाता है जिससे सागरीय जल प्रदूषण का शिकार हो जाता है। सागरीय जल लगातार हवा से कार्बन प्रदूषण को भी सोख‌ रहा ‌है। तेल ‌रिसाव‌ के कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है महासागर मानव निर्मित कार्बन उत्सर्जन का ¼ हिस्सा अवशोषित कर रहे है।

जल प्रदूषण का नियंत्रण

जिन कारणों से जल प्रदूषण बढ़ रहा है उन कारणों को कम करके हम जल प्रदूषण को कम कर सकते है

जैसे –

  • कृषि में जैविक खादों का उपयोग करके हम भूमिगत जल को प्रदूषित होने से बचा सकते है।
  • कारखानों के‌‌ अपशिष्ट को नियोजित तरीके से निस्तारित करके।
  • घरेलू अपशिष्ट का नियोजन करके भी हम जल प्रदूषण को कम कर सकते है।

क्योंकि  W H ओडेन  ने कहा है की “हजारों लोग प्रेम के बिना रह सकते है पानी के बिना नहीं”

जल है तो कल है।

जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रम 

केंद्र सरकार ने राजपत्रित अधिसूचना दिनांक 20.2.2009 के तहत गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत केंद्र और राज्य सरकार के लिए सहयोगी संस्थान के रूप में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना की गई।

  • इसका उद्देश्य योजना की इकाई के रूप में नदी बेसिन के साथ एक संपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाकर नदी प्रदूषण को प्रभावी रूप से कम करना।
  • इस प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं जोकि नीति को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए निर्देश देते हैं।
  • एवं नीति की समीक्षा के लिए स्थानीय समिति के अध्यक्ष वित्त मंत्री होते हैं।
  • दिसंबर 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजना के क्रियान्वयन के लिए फास्ट ट्रैक तंत्र बनाया गया।

जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम

  • जल प्रदूषण की तरफ सरकार का सर्वप्रथम ध्यान 1960 में गया इसलिए 1963 में एक समिति का निर्माण किया गया। इस समिति ने जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की सिफारिश की।
  • 1969 में एक विधेयक तैयार किया गया जो कि 30 नवंबर 1972 को संसद में प्रस्तुत किया गया एवं दोनों सदनों में पारित होने के बाद 23 मार्च 1974 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया एवं जल प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 कहलाया।
  • इस अधिनियम के द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं राज्यों के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई।

1977 का अधिनियम-

यह अधिनियम दिसंबर 1977 राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया इस अधिनियम द्वारा केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को निम्न शक्तियां प्रदान की गई –

  • किसी भी औद्योगिक परिवेश में प्रवेश की शक्ति प्रदान की गई 
  • किसी भी प्रकार के अपशिष्ट का नमूना लेने की शक्ति प्रदान की गई
  • औद्योगिक इकाइयों को अपशिष्ट के निस्तारण के लिए सरकार से सहमति लेने के लिए बाध्य किया गया
  • सरकार को यह अधिकार दिया गया कि अगर औद्योगिक इकाइयां नियोजित तरीके से अपशिष्टका निस्तारण नहीं करेंगी तो उन इकाइयों को बंद किया जा सकता हैं

सबसे पवित्र नदी गंगा में भी प्रदूषण-

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अगस्त 2018 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें बताया गया कि गंगा नदी की 70 निरीक्षण केंद्रों पर जांच की गई। उनमें से केवल पांच केंद्रों पर गंगा का पानी पीने के लायक है एवं सात केंद्र ही ऐसे हैं जिनका पानी नहाने के लायक है तो इससे हमें यह पता चलता है कि प्रदूषण किस हद तक फैला हुआ है। 

क्योंकि पृथ्वी पर 97 प्रतिशत पानी महासागरों एवं समुंदर में खारे पानी के रूप में है जिसका कोई उपयोग नहीं है एवं केवल 3% पानी ही उपयोगी है जिसमें से 2.4 प्रतिशत पानी ग्लेशियर पर बर्फ के रूप में जमा है तो केवल 0.6% जल ही नदियों तालाबों में है जिनका हम प्रयोग कर रहे हैं अगर वह भी उपयोग लायक नहीं रहेगा तो हम अपने कल की कल्पना भी नहीं कर सकते।

अगर आपको वायु प्रदूषण के बारे में विस्तार में जानना है तो ये पोस्ट पढ़ें।

“जल ही जीवन है इसे प्रदूषित ना करें”

ये भी पढ़ें – 

निष्कर्ष – जल प्रदूषण क्या है?

आशा करते है कि यह पोस्ट आप के लिए मददगार रहा होगा। और आशा है कि अब आप जल प्रदूषण क्या है?(jal pradushan kya hai) इसके कारण क्या क्या है और जल प्रदूषण को नियंत्रण कैसे करे? जान गए होंगे। हम आपके सुझावों और योगदान की सराहना करते हैं। अपनी सुझाव देने के लिए नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमें जरूर बताइये। शुक्रिया!

 

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